विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 09)
बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर दूर चीन की सीमा से सटा हुआ भारत का अंतिम गाँव 'माणा' जिसे पुराणों में 'मणिभद्र' के नाम से पुकारा गया है वैसे तो विभिन्न कारणों से प्रसिद्ध है, परन्तु जैसा कि ज्ञात है उत्तराखंड स्वयं में ही संस्कृति एवं आध्यात्म की अनुपम जीवंत धरोहरें पेश करता है। उसी प्रकार यह गांव भी कई पौराणिक कथाओं का साक्षी है। कहा जाता है कि यहीं से पांडवों ने स्वर्ग जाने का मार्ग स्थापित किया था। यहाँ न जाने कितने रहस्य छिपे हुए हैं। भौगोलिक दृष्टि से भी यह भारत का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस गांव की सरलता-मधुरता सबका मन मोह लेती है, ऊँचे पहाड़ो के नीचे बने ईट-पत्थरों के मकान, चारों ओर फैली हरियाली, पुष्पों की मनमोहक सुगन्ध और नदी की कल-कल, हिमालय क्षेत्र में पहाड़ो की गोद मे बसा यह दुर्लभ गांव हर किसी का मन मोह लेने में सक्षम हैं।
पहाड़ो के बीच गाँव इस प्रकार बसा हुआ है जैसे माँ के गोदी में बालक। मात्र कुछ ही परिवारों द्वारा बसाया गया यह गांव दिव्य अनुभूति देता है। यहां आने वाला हर आगुन्तक इस स्थान से इतना अभिभूत होता है कि यहीं का होकर रह जाना चाहता है। प्रकृति की इतनी निश्छल छवि शायद ही और कहीं होगी। यहां के घर इस प्रकार बनाये गये हैं जिसमें नीचे के मंजिले में पालतू मवेशी एवं ऊपरी मंजिल पर परिवार के लोग रहते हैं।
एक सुबह…
पहाड़ी के नीचे घास के मैदान में बहुत से मवेशी चारा कर रहे थे। जिनके मालिक उन्हें चराने के लिए यहां लेकर आये थे और खेतों या नदी आदि में न जाने पाए इसकी देखभाल कर रहे थे। एक ओर पुरुष बैठे हुए थे तो वहीं नदी और खेतों के बीच के ढलान में कुछ बच्चे भेड़ो की चरवाही कर रहे थे।
"ओये आशु क्या कर रही है, भेड़े नदी की ओर जा रही हैं।" एक लड़की चिल्लाती हुई दूसरी लड़की को कहती है। दूसरी लड़की, आशु पता नही किस विचार में खोई हुई थी परन्तु इतना निश्चित था कि उसका भेड़ो के ऊपर कोई ध्यान नही था।
"ओ सॉरी दीदी!" आशु दौड़कर जल्दी से उस भेड़ को वापस झुंड में लाती है।
"तुम अपने दीदी का नाक मत कटा देना एक दिन। अगर यह किसी के खेत में चली जाती तो?" उस लड़की ने प्यार से डाँटते हुए कहा।
"कुछ नही होता! मेरी प्यारी दीदी अपनी आशु को कुछ नही होने देती।" आशु दौड़कर दूसरी लड़की के पास आ गयी जो उम्र में उससे करीब दो-तीन साल बड़ी थी। "आप मेरी प्यारी आँचल दीदी हो न! अपनी आकांक्षा पर कैसे आँच आने दोगी।" मुँह में जैसे मिश्री की डली घोलकर मिठास भरे स्वर में बोली।
"आज तेरे मुँह पर कोई शहद का छत्ता गिर गया था क्या?" आँचल उससे थोड़ा दूर होकर बोली।
"नही तो! ऐसे क्यों पूछ रही हो?" आशु हैरानी भरे स्वर में मुँह फुलाकर बोली।
"नही, अब काँटे उगने वाले फूलों की डाल पर खुशबू आ जाये तो शक होता ही है न!" आँचल चिढ़ाने के अंदाज में बोली।
"दीदी…!" आशु मुँह फुलाकर बोली।
"चल चल अपनी साइड जा। तेरी डरावनी स्टोरी सुन के मुझे बेहोश नही होना है।" आँचल उसके कंधे पर हाथ रख कर धकेलते हुए बोली।
"हुह.. बड़े लोग, बड़ी बातें!" आशु मुँह बनाकर दूसरी ओर बढ़ गयी जहां कुछ भेड़े खेत में जाने की चाव से मेड़ तक बढ़ गई थी। आशु ने अपना गुस्सा उन भेड़ो पर शांत कर लिया।
शाम को..
गाँव के बड़े-बुजुर्ग इस गाँव से दूसरे गाँव जाने की बात कर रहे थे, चूंकि यहां अत्यधिक ठंडी पड़ती थी इसलिए कुछ महीने उन्हें अपना प्यारा माणी गाँव छोड़कर पड़ोस के गाँव में शिफ्ट होना पड़ता था जैसे ही बर्फ हल्की होती है वे पुनः वापस इस स्थान पर आ जाते थे।
आशु के घर सभी एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे। आशु की माँ सभी को गर्मागर्म स्पेशल खीर परोस रही थीं, आशु उसकी दीदी और छोटा भाई एक ओर बैठकर चटकारे ले रहे थे वहीं उसके पिताजी एक ओर समतल लकड़ी के ऊँचे आसन पर बैठे हुए थे। उनका ध्यान खाने से ज्यादा अपने गाँव को छोड़कर कैसे जाएं इस चिंता में लगा हुआ था।
"बाबा क्या हम फिर से गांव को छोड़कर जा रहे हैं।" आशु का छोटा भाई बोला।
"न..नही रवि बेटा! हम बस बर्फ के हटते ही वापस आ जाएंगे।" पिताजी बोले, जैसे अभी रवि का प्रश्न सुनकर उनकी नींद टूटी हो।
"क्या हुआ बाबा? आप परेशान हो?" आँचल उनकी आँखों में उभरी परेशानियों को पढ़ने की कोशिश करते हुए बोली।
"अरे नही बेटा! यह तो हम हर साल ही करते हैं फिर परेशानी किस बात की।" पापा को कुछ न बोलते देख आशु की मम्मी ने बात को संभाल लिया।
"तुम सब अपने कमरे में जाओ, इस बात पर व्यर्थ ही चिंता न करो।" मम्मी भोजन समाप्त करते ही इन तीनो को कमरे में भेजते हुए बोलीं। फिर वे दोनों आपस में कुछ बात करने लगे, स्पष्ट सुनाई नही दे रहा था परंतु ऐसा लग रहा था जैसे मम्मी, पापा को कुछ समझा रही थी।
"तुम्हे क्या लगता है बाबा इस कारण चिंतित है या नही!" रवि आगे आगे कमरे में जाता हुआ बोला।
"तू चुपचाप सो जा छोटे! बच्चे देर तक नही जागते। आशु इसे एक हॉरर स्टोरी सुनाना अपनी।" आँचल उसे बिस्तर की ओर धकेलते हुए बोली।
"पर मैं तो एक्शन-सस्पेंस लिखती हूँ!" आशु आँख दिखाते हुए बोली।
"स्टोरी कोई भी हो, तेरा एक्सप्रेशन तो हमेशा हॉरर होता है।" आँचल के इतना बोलते ही तीनो, दोनों हाथों से अपना मुँह पकड़कर हीहीही करने लगते हैं।
"हाँ तुझे ही देखकर तो मेरे ये एक्सप्रेशन आते हैं। इसका मतलब हॉरर कौन हुआ?" आशु हँसते हुए बोली।
"हाँ मुझे तो पसन्द है हॉरर!" आँचल मुँह टेड़ा करके रजाई अपने सिर के ऊपर तक खींच ली। आशु चादर के नीचे सिर डाल के उसकी रोनी सूरत को देखकर हँसने लगी।
"सो जा भूतनी!" आँचल, आशु के गालों को सहलाते हुए बोली।
"तू भी बड़ी भूतनी।" आशु, आँचल का गाल पकड़कर खींची।
"में….मैं.हेहे!" नीचे से भेड़ो की आवाज आई।
"सो जाओ अब ये सब तुम्हारा साथ देने भूतनी बन गयी।" हंसते हुए रवि इतना बोलकर रजाई में दुबक गया।
"हाँ कल फिर बोरिंग स्कूल! आज तो फिर भी इतवार था।" आशु मुँह लटकाकर बोली।
"हाँ मेरी ड्रामाक्वीन! बस ज्यादा लेट मत करना। बड़ी कृपा होगी।" आँचल बोलती हैं। बाहर से इनकी हँसी सुनकर मम्मी चुप रहने को बोलती हैं जिसके बाद तीनों खुसपुसा कर बातें करने लगे थोड़ी ही देर में उन्हें नींद आ जाती है।
दो-तीन दिन बाद…
"दीदी क्यों न हम आज उस पहाड़ी को चढ़कर आये!" आशु चहकते हुए सामने वाली ऊँची पहाड़ी को दिखाकर बोली जो सितम्बर के आधे में ही बर्फ से ढकना आरंभ हो चुकी थी।
"सुबह-सुबह कोई नशा कर लिया है क्या? या बाबा की चढ़ा ली?" आँचल आज उसे इतनी सुबह जागकर कही जाने को तैयार देख हैरान थी।
"तुम्हें पता है न हर साल की तरह भैया इस साल भी यहां घूमने आएगा और हमारे दूसरे गांव में शिफ्ट होने तक हमारे साथ ही रहेगा।" आशु जैसे आँचल को कुछ याद दिलाने की कोशिश करते हुए बोली।
"ओ.. तो अब समझी मैडम जी इतना जल्दी क्यों जगी ताकि अपने प्यारे-दुलारे भाई को यह साबित कर सकें कि ये आलसी नही हैं। हुंह आलसी कही की।" आँचल मुँह बनाकर बोली।
"तो कोई प्रॉब्लम! मुझको तुमसे कोई सर्टिफिकेट थोड़े लेना है।" आशु भी चिढ़ते हुए बोली।
"नही.. चलो चलो।"
"तो चलो न लेजीनेस कि भी हद होती है।" आशु उसे खींचते हुए पहाड़ी की ओर ले चलती है। "माँ-बाबा हम घुमने जा रहे हैं एक-दो घण्टे में आ जाएंगे।" आशु हाथ मुँह से सटाकर पुकारने के अंदाज में बोली और बिना जवाब सुने आँचल को घसीटते हुए पहाड़ी की ओर ले गयी।
"तू परेशान तो नही है न आशु?" आँचल हाथ छुड़ाकर पूछते हुए बोली।
"मैं क्यों परेशान होउंगी। भाई आ रहा है ढेर सारा चॉकलेट लाएगा और टेड्डी और ये .. वो पता नही क्या क्या..! मैं तो बहुत खुश हूँ।" आशु हवा में उछलते हुए बोली।
"हाँ चटोरी इसीलिए तो तुझे भाई का इंतजार होता है आने दे फिर दोनों से शिकायत करती हूँ तेरी।" आँचल वही घास पर बैठते हुए बोली।
"अरे दीदी चलो न! देखो भैया आएगा मैं पहाड़ नही चढ़ पाऊंगी फिर वो डाटेगा, मुझे चॉकलेट नही मिलेगी फिर मैं आपको हॉरर स्टोरी सुनाऊँगी ...बकर बकर बकर…" आशु उसका हाथ पकड़कर खिंचते खिंचते खुद भी उसके पास बैठ गयी और उसको पकाने लगी।
"बस कर मेरी माँ! मैं तो रोज जाती हूँ तू ही नही जाती।" आँचल उठकर पहाड़ की ओर बढ़ी।
घास के चौड़े ढलानी मैदान के बीच कच्ची पगडंडी पर दोनों बहनें झूमते, शरारत करते, एक दूसरे को चिढाते आगे बढ़ रही थीं। सुबह हों रही थी, पूर्व की ओर से सूर्य देव पहाड़ के पीछे से निकलने लगे थे, उनकी लाली चारो ओर फैल गयी। उनके बहुत ही पास से चिड़ियों का एक झुंड उड़ा जिन्हें बल पकड़ने को दौड़ी। पास में एक छोटी सी नदी बह रही थी, जिसके किनारे सुगन्धित पुष्प उगे हुए थे, सुबह की चुभन देने वाली ठंडी शर्मीली पवन उस खुशबू को चारों ओर बिखेर रही थी। दोनों बहनें चलते चलते पहाड़ी के नीचे तक आ गयी, उनकी ठिठोली अब भी लगातार चल ही रही थी।
"क्या तुम भी इस वजह से परेशान हो कि भैया अब तक नही आया?" आँचल शांत होकर प्रश्नवाचक दृष्टि से ताकते हुए बोली।
"हूं.." आशु गर्दन हिलाकर स्वीकृति देती है। "तुम भी इसका मतलब तुम्हें भी यह चिंता सता रही है कि वह अब तक क्यों नही आये?" आशु उसके शब्दो पर ध्यान देकर बोली।
"हूं" आँचल ने गर्दन हिलाकर स्वीकृति दी। "यार तुम्हें तो अब भी उतनी ही तेजी से चढ़ने आता है।" आँचल पास से अपने उपयोग किये गए पुराने डंडों में से दो लाठी चुनकर उठाते हुए बोली।
"दरअसल मुझे इस बात की चिंता हो रही है कि हम कुछ ही दिनों में दूसरे गांव में शिफ्ट होने वाले हैं और भैया अब तक नही आया। उसे पता है न! फिर ऐसा कैसे हो सकता है?"
"पिछले पाँच सालों से वह हर साल आता रहा है, और अब तो उसका फोन भी नही लगता।" आँचल ने भी अपनी बात को रखा।
"हो सकता है बिजी हो!" आशु मुँह बनाकर बोली। दोनों पेड़ो के बीच पहाड़ पर चढ़ने के लिए बने रास्ते पर चलती जा रही थी, कुछ ही देर बाद दोनों पहाड़ के ऊपर खड़ी लंबी लंबी साँसे ले रही थी।
"लो चढ़ गए न ऊपर!" आशु अपने हाथ को ऊपर उठाकर विजयी मुस्कान लिए बोली।
"हाँ अब नीचे भी उतरना है, जल्दी से स्कूल भी जाना है।" आँचल नीचे की ओर बढ़ी।
"अरे सूर्य देव को प्रणाम तो करने दे।" अपने हाथ जोड़कर प्रणाम की मुद्रा बनाते हुए आशु बोली।
"वो तो नीचे से भी कर सकती थी।" आँचल व्यंग्यात्मक स्वर में बोलकर नीचे उतरने लगी। "हद है ये लड़की भी।"
"और तुम… अनुशासन की पक्की। हुंह..!" आशु भी अपने पैर पटकते हुए नीचे उतरने लगी। शीघ्र ही दोनों नीचे थे, लगभग सुबह के नौ बजने वाले रहे होंगे, सूर्य देव दक्षिण की दिशा में तेज गति से चलने लगे गए थे। आशु और आँचल थककर एक पेड़ के नीचे बैठे थे, अचानक से घना अंधेरा छाने लगा, सूर्यदेव बादलों में कहीं छिप गए, तेज हवाएं चलने लगी।
"लगता है हिमपात होने को है!" आँचल यह सब देखकर बोली, दोनों बहनें एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घर की ओर दौड़ी। आंधी की गति तेज होती जा रही थी, आँचल का दुपट्टा उड़कर हवा के संग न जाने कहाँ खो गया। आँखों के सामने इतना घना अंधेरा छा गया कि कुछ दिखाई नही दे रहा था। दोनों गिरते-पड़ते किसी तरह घर तक पहुँची, जैसा कि अनुमानित था कि यह हिमपात होगा वैसा कुछ भी नही था। अंधेरा सघन होने के साथ डरावना भी होने लगा था, पूरे गांव में रौशनी का कही भी कोई निशान न दिख रहा था।
क्रमशः….
Kaushalya Rani
25-Nov-2021 10:09 PM
Nice part
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Farhat
25-Nov-2021 06:31 PM
Good
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Barsha🖤👑
25-Nov-2021 06:13 PM
बहुत खूबसूरत भाग सर
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